-सीधी जिले में बच्चों का बचपन कबाड़ बीनने और कचरा समेटने में गुजर रहा है। जहां एक ओर बच्चों को शिक्षा मिलनी चाहिए, वहीं दूसरी ओर यह नौनिहाल अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी की जद्दोजहद में कबाड़ ढूंढ़ने को मजबूर हैं। जिम्मेदार अधिकारी इस गंभीर मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं।
साल 2013 से जिले में राष्ट्रीय बाल श्रमिक परियोजना (एनसीएलपी) बंद पड़ी है, जिसके तहत बच्चों को शिक्षा और पुनर्वास के लिए सहायता मिलती थी। इस परियोजना के बंद हो जाने के बाद बच्चों की स्थिति और भी दयनीय हो गई है। जिले में बाल श्रमिकों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है, लेकिन सरकार इस मुद्दे पर न तो कोई ठोस कदम उठा रही है और न ही स्थिति की वास्तविकता को स्वीकार कर रही है।
शासन द्वारा जो आंकड़े पेश किए जा रहे हैं, वे वास्तविकता से बहुत दूर हैं। सरकारी आंकड़े यह दर्शाते हैं कि बाल श्रमिकों की संख्या में कमी आई है, जबकि हकीकत में यह संख्या लगातार बढ़ रही है। बच्चों को शिक्षा देने और उन्हें सुरक्षित रखने के बजाय, वे कचरा बीनने और कबाड़ इकट्ठा करने को मजबूर हैं, ताकि परिवार का पालन पोषण हो सके।
इस स्थिति से निपटने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है। अगर सरकार और प्रशासन ने गंभीरता से इस मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया, तो आने वाली पीढ़ियों का भविष्य अंधकारमय हो सकता है। कबाड़ बीनने वाले इन बच्चों को शिक्षा और सम्मानजनक जीवन देना ही हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।