….प्रति मंगलवार को जन सुनवाई की प्रशासनिक तौर से ब्यवस्था सीधी जिला प्रशासन द्वारा करवाया जाता है जहां जिले के आम जन मानस के मामलों में सुनवाई की मनसा से लोग आते रहे हैं लेकिन धीरे-धीरे जनमानस का विश्वास इस जन सुनवाई से उठता जा रहा है एसे में लोग आना भी बन्द कर रहे हैं ,इसी तरह के हालात रहे तो जन सुनवाई कार्यक्रम सिर्फ एक औपचारिकता बन कर रह जायैगी।पिछले लम्बे समय से ग्रामीण अपनी शिकायतों का निराकरण करवाने सीधी जाला मुख्यालय प्रति मंगलवार को आते रहे इस मामले में सबसे बड़ी समस्या यह रहती है कि मामले में जब शिकायत जिला प्रशासन के पास शिकायते पहुंचती है तो कहा गायब हो जाती है शायद इसकी कोई जानकारी नहीं होती की हालात क्या है मामले में सुनवाई होगी या नहीं।
-आखिर कहा हशपर है लोचा।
जब किसी मामले में शिकायत जिलापंचायत पहुंचती है तो जिला कलेक्टर या फिर कोई सक्षम अधिकारी मामले को समझता है और फिर सम्बंधित विभाग के अधिकारी को बुला कर शिकायत शौप दी जाती है मामले के निराकरण के लिए यही से गोलमाल चालू होता है अधिकांश प्रकरण राजस्व व पंचायत प्रकरण आते हैं।जिसमें बड़े अधिकारियों द्वारा अपने मातहत कर्मचारियों के माध्यम से उस अमले तक पहुंचते हैं जहां पर मामला रूका होता है या फिर सुनवाई नही हुई होती है अधिकारी सामंजस्य बना कर अपना काम निकाल लेता है और आवेदक लेकर दौड़ता रहता है।
-शिकायतो की नहीं होती समीक्षा।
-सीधी जिला प्रशासन के संज्ञान में जो मामले आता है उनमें प्राय: देखा जाता है कि सम्बंधित विभाग को मार्क कर दिया दुबारा देखे आगे क्या होता है उसके मामले में सुनवाई होती है या फिर नही यही कारण है कि लोग शिकायतों को लेकर भटकते रहते हैं और मामले का निराकरण नहीं हो पाता यही कहना है जन सुनवाई में पहुंचने वाले लोग थक हार कर बैठ जाते हैं।
-जनता की नहीं होती सुनवाई तो काहे पहुंचे जनता। …फीका रहा जनता का दरवार,कम पहुंचे लोग। ….दिन व दिन उठता जा रहा जनता का विश्वास।
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